भूतिया हवेली

भूतिया हवेली


भूतिया हवेली

उत्तर भारत के एक छोटे से गांव "नैनागांव" की कहानी है। यह गांव पहाड़ियों और घने जंगलों से घिरा हुआ था। गांव के किनारे एक पुरानी हवेली खंडहर बन चुकी थी, जिसे लोग "कालासिंह की हवेली" के नाम से जानते थे। कहते हैं, कोई ज़माने में वहां एक ज़मींदार कालासिंह अपनी पत्नी और बच्चों के साथ रहता था। लेकिन एक रात कुछ ऐसा हुआ कि पूरा परिवार मौत के घाट उतार दिया गया। तब से उस हवेली को वीरान छोड़ दिया गया। गांववालों का मानना था कि वहां भूत-प्रेत का वास है।

कोई भी सूरज डूबने के बाद उस रास्ते से गुजरने की हिम्मत नहीं करता था। कहते हैं, कई लोगों ने हवेली के अंदर से औरत के रोने की आवाज़, बच्चों के हंसने की गूंज और किसी के पैरों की आहट सुनी थी।

नया आगंतुक

एक दिन शहर से राहुल नाम का लड़का गांव में आया। वह गांव के ही बुजुर्ग पंडित किशोरीलाल का पोता था। शहर में पला-बढ़ा राहुल इन बातों पर यकीन नहीं करता था। गांववालों ने हवेली के किस्से सुनाए तो वह हंस पड़ा।

“अरे भूत-वूत कुछ नहीं होता। सब मन का वहम है,” राहुल ने कहा।

गांव के लड़कों ने मज़ाक में उसे चैलेंज दे डाला कि अगर हिम्मत है तो रात 12 बजे हवेली के अंदर जाकर दीवार पर अपना नाम लिखकर आओ। राहुल ने चुनौती कबूल कर ली।

डरावनी रात

रात के 11:45 बजे राहुल हाथ में टॉर्च लेकर हवेली की तरफ चल पड़ा। चारों तरफ घना सन्नाटा था। दूर कुत्तों के भौंकने की आवाज़ आ रही थी। हवेली तक पहुँचते-पहुँचते उसकी हिम्मत भी थोड़ा डगमगाने लगी। लेकिन उसने खुद को संभाला।

हवेली के टूटे हुए फाटक से भीतर घुसा। चारों तरफ धूल और जाले लगे थे। दीवारों पर उधड़ी हुई पेंटिंग्स और झूमर अब भी लटके हुए थे। हवेली के अंदर से कुछ अजीब सी ठंडी हवा आ रही थी।

जैसे ही राहुल ने आगे बढ़ने की कोशिश की, पीछे से दरवाज़ा अपने आप बंद हो गया। उसने पीछे मुड़ कर देखा — कोई नहीं था। "शायद हवा से बंद हुआ होगा," राहुल बड़बड़ाया और आगे बढ़ा।

भयानक मंज़र

हवेली के एक कमरे में जाकर राहुल ने दीवार पर अपना नाम लिखना शुरू किया। तभी उसे किसी के हँसने की आवाज़ आई। उसने टॉर्च घुमाई — कोई नहीं था। फिर अचानक एक औरत की कराहने की आवाज़ आई। राहुल का दिल तेज़ धड़कने लगा।

अचानक कमरे की खिड़की अपने आप खुल गई और ठंडी हवा का झोंका अंदर आया। उसके साथ ही एक सफेद साड़ी में लिपटी औरत का धुंधला सा साया दिखाई दिया। औरत के बाल बिखरे हुए थे और चेहरा ज़ख्मी था। उसकी आंखों से खून टपक रहा था।

राहुल डर के मारे पत्थर की तरह जम गया। औरत की आवाज़ आई —

"तू... कौन है...? क्यों आया है मेरे घर...?"

राहुल ने कांपती आवाज़ में कहा —
"मैं... मैं तो बस... मेरा नाम लिखने आया था..."

औरत ज़ोर से चीख पड़ी — "कोई मेरा नाम मिटा नहीं सकता... मैं यहीं हूँ... हमेशा..."

भूत की सच्चाई

अचानक राहुल को लगा कि उसके पैर किसी चीज़ में बंध गए हैं। उसने नीचे देखा — एक बच्चा, जिसकी आंखें कोयले जैसी काली थीं, उसके पैरों को पकड़ कर बैठा था। राहुल डर के मारे ज़ोर से चिल्लाया।

उसे अपने कंधे पर किसी के हाथ का एहसास हुआ। उसने टॉर्च घुमाई — वही औरत उसके पीछे खड़ी थी। औरत ने कहा —
"अब तू भी यहीं रहेगा... हमारे साथ..."

राहुल ने हिम्मत जुटाई और वहां से भागने की कोशिश की। जैसे-तैसे दरवाज़ा खोला और हवेली के बाहर निकला। बाहर आते ही सब कुछ शांत हो गया। हवेली वैसी ही खामोश खड़ी थी।

गांववालों की मान्यता

राहुल अगले दिन सुबह बुरी हालत में घर लौटा। बदहवास और डरा हुआ। उसने पंडित किशोरीलाल को सब कुछ बताया।

पंडित जी ने उसे समझाया —
"बेटा, वो कालासिंह की पत्नी 'रूपकला' की आत्मा है। उसे उसके पति ने जलाकर मार डाला था, जब उसने ज़ुल्म के खिलाफ आवाज़ उठाई थी। तब से उसकी आत्मा हवेली में भटकती है। कोई भी हवेली के अंदर उसका नाम मिटाने या जगह लेने जाए, वो उसे मार देती है या पागल कर देती है।"

राहुल ने कसम खाई कि अब कभी ऐसी बेवकूफी नहीं करेगा। गांववालों ने हवेली के दरवाज़े पर फिर से ताला डाल दिया और एक तांत्रिक बुला कर वहां पूजा करवाई।

आज भी...

कहते हैं, आज भी अगर कोई रात के सन्नाटे में उस हवेली के पास से गुजरता है, तो एक औरत की सिसकियों की आवाज़ सुनाई देती है। और हवेली के झरोखों से कोई परछाईं झांकती है।

गांववालों का कहना है — "उसकी आत्मा अभी भी अपनी मौत का बदला लेने के लिए भटक रही है।"


समाप्त।

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